नौ कन्याएं
एक गरिब किसान का परिवार होता है, उसमें उस परिवार के 12 सदस्य होते हैं। उस परिवार में माता-पिता, एक छोटा भाई, नौ बेटियाँ होती है, नौ बेटियां जो है समाज से परिचित नहीं होती है ब्लकि खुले-डुले स्वभाव से रहने वाली होती है उन्हे ये भी नहीं पता होता है कि उनका परिवार गरीब है कि अमिर है, इस समाज मे स्त्री और पुरूष का क्या दर्जा होता है कुछ भी नहीं पता होता है बस उन्हे इस बात का पता होता है कि उनके पिता जी कमाने वाले है और हम सब खाने वाले और किसी भी बात का उन कन्याओं को नहीं पता होता है, छोटा भाई तो अभी छोटा ही होता है, जिसे ज्यादा समझ नहीं होती है।
उनकी जो माता है हमेशा अपने बेटियों के खुले रवइये ( रहन-सहन) को देखकर परेशान रहती है जबकि उनका परिवार जो है गरिब था वो इसी बात को लेकर परेशान रहती थी कि आगे जाकर इनका क्या होगा अगर ऐसा ही चलता रहा तो यह उनकी बेटियां समाज में
किसी परिवार में विवाह कर के जाएगीं तो कही अपने खुले डुले रवइए ( रहन-सहन) के कारण अपनी छवि ख़राब न कर लें। दुसरी तरफ उनका पिता जो अपनी बेटियों और बेटे से बहुत प्यार करता होता है। भले ही गरीब था लेकिन घर में कोई कमी नहीं रखता था असल में पिता के इसी स्नेह के कारण बेटियों में इतना खुले-डुले रवइए( रहन-सहन) से रहना, किसी भी चीज़ को लेकर परेशान नही होती थी, उसकी बेटिया भी अपने पिता से बहुत स्नेह करती थी।
किसी परिवार में विवाह कर के जाएगीं तो कही अपने खुले डुले रवइए ( रहन-सहन) के कारण अपनी छवि ख़राब न कर लें। दुसरी तरफ उनका पिता जो अपनी बेटियों और बेटे से बहुत प्यार करता होता है। भले ही गरीब था लेकिन घर में कोई कमी नहीं रखता था असल में पिता के इसी स्नेह के कारण बेटियों में इतना खुले-डुले रवइए( रहन-सहन) से रहना, किसी भी चीज़ को लेकर परेशान नही होती थी, उसकी बेटिया भी अपने पिता से बहुत स्नेह करती थी।
उस किसान की जो बेटियां है सारा दिन घर पर ही रहती घर का काम करती और जो भी घर में पकवान पकता खुद ही बनाती थी और खूब मज़े से खाती थी। उनकी बस इतना ही ना समझी होती थी कि वो ये नहीं सोचती थी कि हम तो मजे से खा रही है लेकिन उनके माता पिता और भाइयों के लिए कुछ बचेगा कि नहीं। जो उनकी माँ अपनी बेटी की इन्ही हरकत को लेकर परेशान रहती थी, पिता जो है वो बेटियां से स्नेह इतना करता था कि वो अपनी पत्नी को ही डाँट देता था ऐसा कई दिनों तक चलता रहा लेकिन अब पिता भी इस बात को लेकर गंभीर होने लगा था क्योकि वो भी कब तक आधा पेट खाएगा। उसने एक दिन सोचा क्यो न जब उनकी बेटियाँ रात का खाना खाकर सो जाएगी तो वो रात में दुबारा से पकवान बना कर पेट भर कर खाना खाएंगे। लेकिन जब वो अपनी पत्नी से ये बात कर ही रहा होता है तो उसकी छोटी बेटी ये सब बात सुन लेती है कि उनके माता-पिता हम लोगों को रात में सो जाने के बाद बहुत अच्छे पकवान बनाकर खाएंगे। ये सारी बाते वो अपनी बाकी की बहनों को भी बता देती है। बाकि बहनों को पहले तो ये बाते सुनकर कुछ महसूस नही होता वो एक चाल चलती है कि हम रसोई में से खाना पकाने वाली एक-एक सामान लेकर सो जाती हैं, इस तरह से कोई बहन कड़ाही लेकर सो जाती, कोई बहन खाना बनाने वाली किसी ओर सामान को लेकर सो जाती इस तरह से नौं बेटियों ने सारा खाना बनाने वाला सामान अपने साथ लेकर सो जाती है। ताकि रात में जब खाना बनाते वक्त किसी समान की कमी होगी तो उसके माता-पिता उन्हें उठा देंगे और उन्हे भी यह पकवान खाने को मिलेगा।
और रात में बिल्कुल ऐसा ही होता है।
उनके माता-पिता बेटियों के सो जाने के बाद खाना पकाने का इंतज़ाम करने लगते हैं लेकिन खाना पकाने वाला सामान न मिलने पर परेशान हो जाते है तभी उन्हें शक होता है कि उनकी एक बेटी ने उस सामान को अपने पास छुपा रखा है तभी वो सामान लेने जाते है तो उस बेटी की नींद टुट जाती है, इस तरह किसी सामान की जरुरत पड़ती तो उन्हें शक पड़ जाता है कि जरूर उनकी बेटी के पास ही वो सामान है। उनकी बेटियों ने हर सामान अपने पास छुपा रखा था। इस तरह रात में जो उन्होनें खाना पकाने का इंतेज़ाम किया था वो सारा खाना पकाने के बाद उनकी बेटियों के साथ उस भोजन को साझा करना पड़ता है। जिससे फिर भोजन की कमी के कारण उन्हें कम ही भोजन ही मिल पाता। जिससे सारा पकवान फिर से बेटियाँ खुले से खा लेती है। जिससे किसान और उसकी पत्नी और बेटा फिर से आधे पेट ही खाना खा पाते है।
फिर अगले दिन माता-पिता सोचते है क्यों न हम अपनी बेटियों को खेत मे घुमाने के बहाने जंगल मे ही छोड़ आते है और बाद मे घर पर वापिस अच्छे-अच्छे पकवान बना कर खाएंगे। ठीक उसी तरह पिता अपनी नौ बेटियों को अपने खेत मे घुमाने ले जाता और उन्हे कहता कि जाओ बेटियो यह पुरा जंगल और उसके साथ लगने वाले खेत हमारे हैं। जितना मर्जी खाए-पिए और मौज़ उड़ाए। लेकिन वो अपनी बेटियों को एक बात समझा देता है कि मैं अपनी पगड़ी पास के पेड़ पर टांग देता हुँ जब भी तुम इस पगड़ी को देखना तो समझना कि तुम्हारे पिता कहीं आस- पास ही है और फिर भोली-भाली बेटियां पिता के कहने पर घुमने चली जाती है।
लेकिन बारी-बारी से उनमें एक बहन अपने पिता की पगड़ी को देखने आ जाया करती थी ताकि उन्हे इस बात का पता रहे कि उनके पिता जी कही आस-पास ही हैं।
और दुसरी तरफ किसान अपने घर पर अपनी पत्नी और बेटे के साथ मिलकर खुब पकवान बनाते और पेट भर कर खाते।
उनकी बेटियां सारा दिन जंगल में, खेतों मे घुमती रहती लेकिन उन्हे जंगल मे कुछ भी खाने को नहीं मिला और सारा दिन भुखी रहती। बस मजबुरी मे जंगल की शाक-पत्ते को ही खा लेती थी। फिर जब शाम को उनकी बेटियां थक कर उसी पेड़ के नीचे आकर खड़ी हो जाती जहां उनके पिता ने पगड़ी बांध रखी होती है और अपने पिता के वापिस आने का इंतज़ार करने लगती। लेकिन काफी समय बीत जाता उन बेटियों के पिता वहां नहीं लोटते। फिर वो सोचने लगती है कि क्यों न हम खुद ही घर चली जाती है। पिता जी आएंगे तो घर आ ही जाएंगे।
जब वे अपने घर वापिस लौटती है तो वो देखती है कि उनके पिता तो घर पर ही है और माता ने खुब पकवान बनाए हुए है और खूब मज़े से खा पी रहे है। उनके माता- पिता को इस बात की धुन ही नहीं होती कि उनकी बेटियां जंगल में सारा दिन भुखी रही है। उनकी बेटियां जब ये नज़ारा देखकर हैरान हो जाती है और अपने आप से घृणा करने लगती है और माता-पिता भी अपनी बेटियों को देखकर चौंक जाते है। तभी उनकी नौ बेटियाँ एक साथ आसमान की तरफ देखती हैं और कहती है कि हमें इस जीवन से मुक्त कर दे। तभी वे सभी नौ बेटियां पत्थर की मुर्ति में बदल जाती है। असल मे वे नौ देवियां होती है जो उनके घर पर पैदा हुई थी जब उनके माता-पिता को इस बात का पता चलता है तो उन्हें अपनी किये हुए कृत पर बहुत पछतावा होता और अपनी ग़लती पर पछतावा करने लगते हैं और वहीं पर मुर्तियों के आगे सिर को पटक-पटक कर अपनी जान देते है।
लोककथा लेखक:
बलवीर, जालंधर शहर, पंजाब, उत्तर भारत
भारत, दक्षिण एशिया महाद्वीप, एशिया महाद्वीप
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