योग करने वालों योगियों के लिए संसार में भगवान शिव ने 84 लाख योनियों में जितने योनि होती हैं उतने ही योग संसार में प्रकट किये हैं। उसमें से भी उत्तम 84 योग है और अगर हम उससे भी उत्तम योग की बात करे तो ध्यान योग में प्रणायाम ही सबसे उत्तम योग है। लेकिन समय के बदलाव के साथ इसमे कई बदलाव होते गये कोई इन योगों को करने सक्षम नहीं तो किसी का पास समय नहीं है। तो इन सभी योगों को सुर्य नमस्कार के रुप में सभी योगों को सम्मिलित कर लिया गया कहने का मतलब है कि सभी योग को सार के रूप मे सुर्य नमस्कार के रुप मे ढाल दिया गया या फिर यु कहें कि सुर्य नमस्कार ही सभी योगों का सार है। जिसे आज कल के समय मे कोई समय निकाल कर सुर्य नमस्कार जैसे व्यायाम को कोई भी किसी जाति, किसी धर्म, किसी भी उम्र मे आसानी से किया जा सकता है। सुर्य नमस्कार का वैसे तो असली मतलब होता है कि अपने आप को सुर्य (सुर्य को ईश्वर का रुप मानकर ) को अर्पित करना ही होता है। सुर्य नमस्कार वैसे तो ध्यान लगाने के लिए, मन को शांत करने के लिए, शरीर मे उर्जा बनाये रखने के लिए(Immunity के लिए), रोगों से रक्षा करने के लिए होता है।
सुर्य नमस्कार की खोज
सुर्य नमस्कार की खोज के बारे साधु सन्तों या पुराणों के अनुसार हनुमान जी को ही माना गया है क्योकि जब वे बाल रुप मे थे तो उन्हे ज्ञान प्राप्ति के लिए भगवान सुर्य को ही गुरु जी के रुप मे नियुक्त किया गया था और हनुमान जी अपने गुरु भगवान सुर्य से ज्ञान प्राप्त भी करते थे और उन्हे आदर प्रकट करने के लिये या अपने गुरु सुर्य भगवान को सम्मान देने के लिए 12 तरिके का आसन किया करते थे।
जिसे सयुक्त रुप से 'सुर्य नमस्कार' का रुप दे दिया गया। योग में हनुमान जी द्वारा और भी बहुत से आसन दिये गये है जो हनुमान जी के नाम से ही प्रसिद्ध है। मुख्य रुप सुर्य नमस्कार ज्यादा प्रसिद्ध है।
सुर्य नमस्कार करते समय बोले जाने वाले मन्त्र
- ॐ सुर्याय नम:
- ॐ मित्राय नम:
- ॐ हिरण्गर्भाय नम:
- ॐ आकाशाये नम:
- ॐ खगाये नम:
- ॐ दिनकराये नम:
- ॐ रवये नम:
- ॐ भानवे नम:
- ॐ भास्कराय नम:
- ॐ भर्गाये नम:
- ॐ मरिचये नम:
- ॐ आदित्याये नम:
सुर्य नमस्कार मे किये जाने वाले सरकल या आसन
- हस्त प्रणाम आसन (हाथो को जोड़ना)
- हस्त उतान आसन (हाथों को ऊपर की ओर ले जाना)
- हस्त पाद आसन (हाथों से पैरो छुना)
- अश्व संचालन आसन (एक ऐसा आसन जिसमे घोड़े जैसे आकृति बनती है)
- पर्वत आसन (इस आसन मे पर्वतनुमा आकृति बनती है।)
- अष्टांग नमस्कारम
- भुजंग आसन (यह आसन सर्प या सांप या नाग के सम्मान फुंकार भरते हुए दिखाई देता है।)नोट भुज का मतलब ही सर्प, नाग, सांप होता है।
- अधो मुख आसन(पर्वत आसन के समान ही दिखने वाला आसन)
- अश्व संचालन आसन(ऊपर दिये गये चोथे प्रकार के आसन के समान ही)
- हस्त पाद आसन (हाथों से पैरो छुना)
- हस्त उतान आसन (हाथों को ऊपर की ओर ले जाना)
- हस्त प्रणाम आसन (हाथो को जोड़ना)
0 Comments