नाद ध्वनि क्रिया

     योगवेत्ता पुरुष को चाहिये कि सुखद आसनपर बैठकर विशुद्ध श्वास (प्राणायाम) द्वारा योगाभ्यास करे। रात में जब सब लोग सो जायें, उस समय दीपक बुझाकर या अन्धकार में योग धारण करे। तर्जनी अंगुली से या रुई से दोनों कानो को बंद करके दो घड़ी तक दबाये रखे। उस अवस्था में अभिप्रेरित शब्द सुनायी देता है। इससे संध्या का खाया हुआ अन्न क्षणभरमें पत्र जाता है और सम्पूर्ण रोगो तथा ज्वर आदि बहुत से उपद्रवों का शीघ्र नाश कर देता है। जो साधक प्रतिदिन इसी प्रकार दो घड़ी तक शब्द का साक्षात्कार करता है, वह मृत्यु तथा काम को जीतकर इस जगत में स्वच्छन्द विचरता है और सर्वज्ञ एवं समदर्शी इस शब्दब्रह्म को पाकर भी जो दूसरी वस्तु की अभिलाषा करते हैं, वे मुक्के से आकाश को मारते हैं और भूख-प्यास की कामना करते हैं। यह शब्दब्रह्म ही सुखद, मोक्ष का कारण, बाहर भीतर के भेद से रहित, अविनाशी और सभी उपाधियों से रहित परब्रह्म है। यह जानकर मनुष्य मुक्त हो जाता है। जो लोग कालपाशसे मोहित हो शब्दब्रह्मको नहीं जानते, वे पापी और कुबुद्धि मनुष्य मृत्यु के फंदे में फँदे रहते हैं। मनुष्य तभी तक संसार में जन्म लेते हैं, जब तक प्रत्येक आश्रयभूत परमतत्त्व (परब्रह्म परमात्मा) की प्राप्ति नहीं होती। परमतत्त्व का ज्ञान हो जाने पर मनुष्य जन्म-मृत्यु के बन्धन से मुक्त हो जाता है। निद्रा और अलस्य साधना का बहुत बड़ा विघ्न है। इसलिए शत्रु को यत्नपूर्वक जीतकर सुखद आसन पर आसीन हो प्रतिदिन शब्दब्रह्म का अभ्यास करना चाहिए। सौ साल का अवस्थावाला वृद्ध पुरुष इसका अभ्यास करते हैं तो उसका शरीररूपी स्तंभ मृत्यु विजेता हो जाता है और उसे प्राणवायुकी शक्ति को बढ़ाने वाला आरोग्य प्राप्त होता है। वृद्ध पुरुष भी ब्रह्मक अभ्यास से होनेवाले लाभ का विश्वास देखा जाता है, फिर तरुण मनुष्य को इस साधना से पूर्ण लाभ हो इसके लिए तो कहना ही क्या है। यह शब्दब्रह्म न ओंकार है, न मंत्र है, न बीज है, न अक्षर है। यह अनाहत नाद है। इसका उच्चारण अधिक नहीं होता है। यह शब्दब्रह्म परम कल्याणमय है। प्रिये। शुद्ध बुद्धिवाले पुरुष यत्त्रपूर्वक निरन्तर इसका अनुसंधान करते हैं। इस प्रकार नौ प्रकार के शब्द बताए गए हैं, जिन्हें प्राणवेत्ता पुरुष लक्षित करते हैं। मैं उन्हें उपाय करके बता रहा हूँ। उन शब्दों को नादसिद्धि भी कहते हैं। वे शब्द क्रमशः इस प्रकार हैं-
  1. घोष ध्वनि(नाद)
  2. कांस्य (झाँझ आदि)ध्वनि(नाद)
  3. श्रंङ्ग '(सिंगा आदि)ध्वनि(नाद)
  4. घण्टा ध्वनि (नाद)
  5. वीणा ध्वनि(नाद)
  6. बाँसुरी ध्वनि(नाद)
  7. दुन्दुभि ध्वनि(नाद)
  8. शंख ध्वनि(नाद)
  9. मेघ- गर्जन ध्वनि(नाद)
  10. तुंकार ध्वनि(नाद)
        इन नौ प्रकारों के शब्दों को त्याग कर तुंकार का अभ्यास करें। इस प्रकार सदा ही - ध्यान करने वाला योगी पुण्य और पाप से लिप्त नहीं होता है।

देवी ! योगाभ्यासके 'द्वारा सुनने का प्रयत्न करने पर भी जब योगी उन शब्दों को नहीं सुनता और अभ्यास करते-करते मरणासन्न हो जाता है, तब भी वह दिन-रात उस अभ्यास में ही लगा रहे। ऐसा करने से सात दिनोंमें यह शब्द प्रकट होता है, जो मृत्यु को जीतने वाला है। देवि ! वह शब्द नौ प्रकार का है। उसका मैं यथार्थरूप से वर्णन करता हूँ। 
  • पहले सो घोषात्मक नाद प्रकट होता है, जो आत्मशुद्धि का उत्कृष्ट साधन है। यह उत्तम नाद सब रोगों को हर लेने वाला तथा मन को वशीभूत करके अपनी ओर खींचने वाला है।
  • दूसरा कांस्य नाद है, जो प्राणियों की गति को सतम्भित कर देता है। वह विष, भूत और ग्रह आदि सबको बाँधता है - इसमें संशय नहीं है। 
  • तीसरा श्रंङ्ग नाद है, जो अभिचार से सम्बन्ध रखने वाला है। उसका शत्रु के उच्चाटन और मारण में नियोग एवं प्रयोग करे।
  • चौथा घण्टा नाद है; जिसका साक्षात् परमेश्वर शिव उच्चारण करते हैं। वह नाद सम्पूर्ण देवताओं को आकृष्ट कर लेता है, फिर भूतल के मनुष्यों की तो बात ही क्या है। यक्षों और गन्धवों की कन्याएँ उस नाद से आकृष्ट हो योगी को उसकी इच्छा के अनुसार महासिद्धि प्रदान करती हैं तथा उसकी अन्य कामनाएँ भी पूर्ण करती हैं। 
  • पाँचवाँ नाद वीणा है, जिसे योगी पुरुष ही सदा सुनते हैं। वीणा-नाद से दूर-दर्शन की शक्ति प्राप्त होती है। 
  • वंशी नाद का ध्यान करने वाले योगी को सम्पूर्ण तत्त्व प्राप्त हो जाता है। 
  • दुन्दुभि का चिन्तन करने वाला साधक जरा और मृत्यु के कष्ट से छूट जाता है। 
  • शंख नाद का अनुसंधान होने पर इच्छानुसार रूप धारण करने की शक्ति प्राप्त हो जाती है। 
  • मेघ नाद के चिन्तन से योगी को कभी विपत्ति का सामना नहीं करना पड़ता।
        जो प्रतिदिन एकाग्रचित्तसे ब्रह्मरूपी तुंकार का ध्यान करता है, उसके लिये कुछ भी असाध्य नहीं होता। उसे मनोवाञ्छित सिद्धि प्राप्त हो जाती है। वह सर्वज्ञ, सर्वदर्शी और इच्छानुसार रूपधारी होकर सर्वत्र विचरण करता है, कभी विकारों के वशीभूत नहीं होता। वह साक्षात् शिव ही है, इसमें संशय नहीं है। परमेश्वरि ! इस प्रकार मैंने तुम्हारे समक्ष शब्दब्रह्म के नवधा स्वरूप का पूर्णतया वर्णन किया है।


Naad Sound Process

           A Yogvetta man should sit on a comfortable posture and practice yoga with pure breathing (Pranayama). At night, when everyone goes to sleep, then extinguish the lamp or do yoga in the dark. Close both the ears with index finger or cotton and keep it pressed for two hours. At that stage the inspired word is heard. Due to this, the food eaten in the evening goes away in a moment and destroys all diseases and many nuisances like fever very quickly. The seeker who interviews the word like this for two hours every day, conquering death and lust, he roams freely in this world and those who yearn for something else, even after attaining this all-knowing and all-seeing God, beat the sky with their fists and go hungry. -wish thirst. This Shabdabrahma is the only pleasant, the cause of salvation, free from the difference between outside and inside, He is indestructible and devoid of all titles. Knowing this, man becomes liberated. Those who are fascinated by the noose of time and do not know Shabda Brahma, are sinful and evil-minded human beings who remain trapped in the trap of death. Human beings are born in the world until every underlying Paramatma (Parabrahma Paramatma) is attained. Once one has knowledge of the Supreme Being, one is freed from the bondage of birth and death. Sleep and laziness are a great obstacle to cultivation. Therefore, one should conquer the enemy with effort and sit in a pleasant seat and practice Shabda Brahma every day. If an old man of one hundred years of age practices it, his body pillar becomes death conqueror and he gets health that increases the power of oxygen. Even the old man is seen to believe in the benefits of Brahmic practice, then what to say for the young man to get full benefit from this sadhana. This is ShabdaBrahma not Omkar, There is no mantra, no seed, no letter. This is Anahat Naad. It is not pronounced much. This word Brahma is the ultimate welfare. Dear Men of pure intellect always search for it by means of a method. In this way, nine types of words have been mentioned, which are targeted by the living beings. I am telling them the solution. Those words are also called Naadsiddhi. Those words are as follows-

  1. Ghosh (Band) Sound
  2. Bronze (Cymbals) Sound
  3. श्रंग  ' (HornsSound
  4. Bell Sound
  5. Harp Sound
  6. Flute Sound
  7. Dundubhi (Drum) Sound
  8. Shell (Conch) Sound
  9. Thunder Sound
  10. Tunkar Sound (Last Sound)
Avoid these nine types of words and practice Tunkar. Thus the ever-meditating Yogi is not attached to virtue and sin.

Goddess ! When the yogi does not hear those words even after trying to hear them through the practice of yoga and becomes near death while practicing, even then he should remain engaged in that practice day and night. By doing this, in seven days this word appears, which is going to conquer death. Devi! That word is of nine types. I describe it realistically. 
  • First comes the sound of declaration, which is an excellent means of self-purification. This great sound is the one who removes all diseases and makes the mind The one who subdues and pulls you towards himself. 
  • The second is the bronze sound, which freezes the movement of living beings. He binds poison, ghosts and planets etc. - there is no doubt about it. 
  • The third  horn  is sound, which is related to sexual intercourse . Employ and use it in the elevation and killing of the enemy.
  • The fourth Bell sound; Which is pronounced by Lord Shiva in person. That sound attracts all the deities, then what to talk about the humans of the earth. The daughters of the Yakshas and the Gandhavs, being attracted by that sound, bestow the yogi with great success according to his wish and fulfill his other wishes as well. 
  • The fifth sound is Veena, which is always heard by Yogi men. The power of tele-vision is obtained from the sound of Veena. 
  • The yogi who meditates on Vanshinad attains  the complete essence. 
  • The seeker who meditates on Dundubhika is freed from the pain of old age and death. 
  • On the study of Conch sound, one gets the power to take any form as per one's wish. 
  • Yogi never has to face calamity by thinking of Meghnad.
The one who meditates on Brahmarupi Tunkar daily with concentrated mind, nothing is impossible for him. He gets the desired achievement. He is omniscient, omniscient and roams everywhere, being in form according to his will, never being influenced by vices. He is actually Shiva, there is no doubt about it. God! In this way, I have completely described before you the Navadha Swarup of Shabdabrahma.


Refrence Shiv Puran