महान पांच कृत्य

  1. सृष्टि करना
  2. पालना करना
  3. संहार करना
  4. तिरोभाव करना
  5. अनुग्रह करना
सृष्टि करना    सृष्टि करने का कार्य भार भगवान ब्रह्मा पर है। सृष्टि को उत्पन्न करना सिर्फ भगवान ब्रह्मा ही कर सकते हैं। इसलिए उन्हे परमपिता कहा जाता है।

पालना करना    पालन करने का कार्य भार भगवान विष्णु पर है। सृष्टि को पालना पोषित करना सिर्फ भगवान विष्णु ही कर सकते हैं।इसलिए वह समय-समय पर अवतार लेते रहते हैं जगत कल्याण करने के लिए। इसलिए उन्हे जगदेश्वर भी कहा जाता है।

संहार करना    संहार करने का कार्य भार भगवान रुद्र करते हैं।इस जगत मे या फिर इस जगत की सृष्टि होती है, उसकी पालना की जाती है, समय पुरा होने पर उसे नष्ट भी करना पड़ता है इसलिए कार्य को भगवान रुद्र ही करते हैं। वेदों मे उन्हे रुद्रदेव भी कहा जाता है।

तिरोभाव करना    तिरोभाव करने का कार्य भार महेश्वर पर छोड़ा गया है।

(उदाहरण के तोर पर यदि किसी वस्तु का निर्माण होता है,उसका इस्तेमाल होता, फिर उससे काम निकल जाने पर उसका नष्ट कर दिया जाता है या उसे फेंक दिया जाता है लेकिन उस नष्ट हुई चीज़ का अगर हम फिर से इस्तेमाल करने योग्य बनाना हो या फिर उसे ऐसे ही पड़े रहना है उसी को ही तिरोभाव कहा जाता है।)

उदाहरण के अनुसार महेश्वर नष्ट हुए संसार का पुरी तरह से नष्ट नहीं करते है उसे किसी ओर रुप मे ढाल कर भगवान ब्रह्मा और भगवान विष्णु द्वारा फिर इस्तेमाल करने योग्य बना देते है। अगर नहीं तो वह उसी प्रकार ही संसार अपने उपयु्क्त समय का इंतजार करेगा या फिर उसे पुरी तरीके नष्ट करने के लिए आगे अनुग्रहित किया जाता है।

अनुग्रह करना    अनुग्रह करने का मतलब होता की उस पर कृपा करना या दया भाव प्रकट करना। इस प्रकार का कार्य अंतिम ही होता है। इस प्रकार का कार्य भार स्वयम निष्कल स्वरुप भगवान शिव करते हैं क्योकि वह सब पर दया करने वाले हैं और बहुत ही सोच विचार करके किसी भी कार्य को अनुग्रहित करते हैं। मतलब हमेशा के लिए ही मुक्त कर देते हैं। अपने में ही समा लेते है। इसी को ही असली मोक्ष कहते हैं चाहे वो अणु, परमाणु, आत्मा, जीवात्मा, संसार, ब्रह्माण्ड आदि।

ब्रह्मा और विष्णु का निष्कल रुप भगवान शिव से वार्तालाप

ब्रह्मा और विष्णु ने निष्कल स्वरुप भगवान शिव से पूछा-प्रभो ! सृष्टि आदि पाँच कृत्यों के लक्षण क्या हैं, यह हम दोनों को बताइये।

निष्कल स्वरुप भगवान शिव बोले- मेरे कर्तव्यों को समझना अत्यन्त गहन है, तथापि मैं कृपापूर्वक तुम्हें उनके विषय के बारे में बता रहा हूँ। ब्रह्मा और अच्युत ! 'सृष्टि', 'पालन', 'संहार', 'तिरोभाव' और 'अनुग्रह' – ये पाँच ही मेरे जगत्-सम्बन्धी कार्य हैं, जो नित्यसिद्ध है । संसार की रचना का जो आरम्भ है, उसी को सर्ग या 'सृष्टि' कहते हैं । मुझसे पालित होकर सृष्टि का सुस्थिर रूप से रहना ही उसकी स्थिति' है। उसका विनाश ही 'संहार' है। प्राणों के उत्क्रमणको 'तिरोभाव' कहते हैं। इन सबसे छुटकारा मिल जाना ही मेरा 'अनुग्रह' है। इस प्रकार मेरे पाँच कृत्य हैं। सृष्टि आदि जो चार कृत्य हैं, वे संसार का विस्तार करनेवाले हैं। पाँचवाँ कृत्य अनुग्रह मोक्ष का हेतु है। वह सदा मुझमें ही अचल भाव से स्थिर रहता है। मेरे भक्तजन इन पाँचों कृत्यों को पाँचों भूतों में देखते हैं। सृष्टि भूतल में, स्थिति जल में, संहार अग्नि में, तिरोभाव वायु में और अनुग्रह आकाश में स्थित है। पृथ्वी से सबकी सृष्टि होती है। जल से सबकी वृद्धि एवं जीवन- रक्षा होती है। आग सबको जला देती है। वायु सबको एक स्थान से दूसरे स्थान को ले जाती है और आकाश सबको अनुगृहीत करता है। विद्वान् पुरुषों को यह विषय इसी रूप में जानना चाहिये। इन पाँच कृत्यों का भारवहन करनेके लिये ही मेरे पाँच मुख हैं । चार दिशाओं में चार मुख हैं और इनके बीच में पाँचवाँ मुख है। पुत्रो ! तुम दोनों ने तपस्या करके प्रसन्न हुए मुझ परमेश्वर से सृष्टि और स्थिति नामक दो कृत्य प्राप्त किये हैं। ये दोनों तुम्हें बहुत प्रिय हैं। इसी प्रकार मेरी विभूतिस्वरूप 'रुद्र' और 'महेश्वर' में दो अन्य उत्तम कृत्य — संहार और तिरोभाव मुझसे प्राप्त किये हैं। परंतु अनुग्रह नामक कृत्य दूसरा कोई नहीं पा सकता। रुद्र और महेश्वर अपने कर्म को भूले नहीं हैं। इसलिये मैंने उनके लिये अपनी समानता प्रदान की है। वे रूप, वेष, कृत्य, वाहन, आसन और आयुध आदि में मेरे समान ही हैं। मैंने पूर्वकाल में अपने स्वरूपभूत मन्त्र का उपदेश किया है, जो ओंकार के रूप में प्रसिद्ध है। वह महामङ्गलकारी मन्त्र है। सबसे पहले मेरे मुखसे ओंकार ( ॐ ) प्रकट हुआ, जो मेरे स्वरूपका बोध कराने वाला है। ओंकार वाचक है और मैं वाच्य हूँ। यह मन्त्र मेरा स्वरूप ही है। प्रतिदिन ओंकार का निरन्तर स्मरण करनेसे मेरा ही सदा स्मरण होता है।

Great five acts

  1. To Create
  2. To Nurture
  3. Annihilate
  4. To Disappear(Vanish)
  5. Grace

Creation  The task of creation is on Lord Brahma. Only Lord Brahma can create the universe. That is why He is called the Supreme Father.    

Nurture    The task of rearing is on Lord Vishnu.Only Lord Vishnu can sustain and nurture the universe. That's why he incarnates from time to time to do welfare of the world. That's why he is also called Jagdeshwar.    

Annihilate    Lord Rudra does the work of destroying. In this world or this world, it is created, it is maintained, when the time is over, it has to be destroyed, therefore only Lord Rudra does the work He is also called Rudradev in the Vedas.

Vanishing    The task of vanishing has been left on Maheshwar.

(For example , if an object is manufactured, it is used, then it is destroyed or thrown away when it is out of use, but if we want to make that destroyed thing usable again. Or else he has to remain lying like this, that itself is called Tirobhav.)

According to the example, Maheshwar does not destroy the destroyed world completely, but transforms it into some other form and makes it usable again by Lord Brahma and Lord Vishnu. If not, then the world will wait for its opportune time in the same way or else it is further blessed to destroy it completely.

Grace To do grace means to show kindness or kindness to him. This type of work is final only. This type of work is carried out by Lord Shiva himself in an impeccable form because he is merciful to all and blesses any work after careful consideration. That means they free you forever. He merges in himself. This is called real salvation whether it is atom, atom, soul, soul, world, universe etc.

Brahma and Vishnu's pure form conversation with Lord Shiva

Brahma and Vishnu asked Lord Shiva in an impeccable form - Lord! Tell both of us what are the symptoms of the five acts of creation etc.

Lord Shiva said in a flawless form - It is very deep to understand my duties, however I am kindly telling you about their subject. Brahma and Achyut! 'Creation', 'Maintenance', 'Sanhar', 'Tirobhaav' and 'Grace' - these are the five world-related activities of mine, which are eternally proven. The beginning of the creation of the world is called Sarga or 'Srishti'. Being nurtured by me, the creation's condition is to live in a stable way. Its destruction is 'Sanhar'. The reversal of prana is called 'tirobhava'. Getting rid of all these is my 'grace'. Thus are my five acts. The four acts of creation etc. are the ones that expand the world. The fifth act is the purpose of grace salvation. He always remains unshakable in me. My devotees see these five acts in the five ghosts. Creation in the ground, situation in water, Annihilation is situated in the fire, Tirobhav is situated in the air and Anugraha is situated in the sky. Everyone is created from the earth. Everyone's growth and life is saved by water. Fire burns everyone. The wind takes everyone from one place to another and the sky blesses everyone. Learned men should know this subject in this form only. I have five faces only to carry out these five functions. There are four faces in the four directions and there is a fifth face in the middle.sons! Both of you have received two acts of creation and status from me, the Supreme Lord pleased by doing penance. These two are very dear to you. In the same way, 'Rudra' and 'Maheshwar' in my Vibhuti form have received two other best actions from me - destruction and disappearance. But no one else can get the act called grace. Rudra and Maheshwar have not forgotten their Karma. That's why I have provided my equality for them. They are similar to me in form, dress, actions, vehicle, posture and weapons etc. In the past, I have preached my Swaroopbhut mantra, which is famous as Omkar. It is a great auspicious mantra. First of all Omkar (Om) appeared from my mouth, which is the one who makes me understand my nature. Omkar is the reader and I am the reader. This mantra is my form only. By continuously remembering Omkar everyday, I am always remembered.


 Refrence Shiv Puran