काल और मृत्यु पर विजय प्राप्त करने की यौगिक साधनाएँ निम्नलिखित

  1. प्राणायम
  2. मुख से वायुपान
  3. भुमध्य में अग्नि का ध्यान
  4. मुड़ी हुई जिव्हा द्वारा गले की घन्टी का स्पर्श
शिव-पार्वति संवाद

पार्वती बोलीं- प्रभो ! यदि आप प्रसन्न हैं तो योगी योगाकाशजनित वायु पद को जिस प्रकार प्राप्त होता है, वह सब मुझे बताइये।

भगवान् शिवने कहा—सुन्दरि ! पहले मैंने योगियों के हित की कामना से सब कुछ बताया है, जिसके अनुसार योगियों ने काल पर विजय प्राप्त की थी। योगी जिस प्रकार वायु का स्वरूप धारण करता है, उसके विषय में भी कहा गया है। इसलिये योग- शक्ति के द्वारा मृत्यु-दिवस को जानकर प्राणायाम में तत्पर हो जाय। ऐसा करने पर आधे मास में ही यह आये हुए काल को जीत लेता है। हृदय में स्थित हुई प्राणवायु सदा अग्नि को उद्दीप्त करने वाली है। उसे अग्नि का सहायक बताया गया है। यह वायु बाहर और भीतर सर्वत्र व्याप्त और महान् है ज्ञान, विज्ञान और उत्साह - सबकी प्रवृत्ति वायु से ही होती है। जिसने यहाँ वायु को जीत लिया, उसने इस सम्पूर्ण जगत्पर विजय पा ली।
        साधक को चाहिये कि वह जरा और मृत्यु को जीतने की इच्छा से सदा धारणा में स्थित रहे; क्योंकि योगपरायण योगी को भली भाँति धारणा और ध्यान में तत्पर रहना चाहिये। जैसे लुहार मुख से धौकनी को फूंक-फूंक कर उस वायु के द्वारा अपने सब कार्य को सिद्ध करता है, उसी प्रकार योगी को प्राणायाम का अभ्यास करना चाहिये । प्राणायाम के समय जिनका ध्यान किया जाता है, वे आराध्यदेव परमेश्वर हज़ारों मस्तक, नेत्र, पैर और हाथों से युक्त हैं तथा समस्त ग्रन्थियों को आवृत करके उनसे भी दस अंगुल आगे स्थित हैं। आदि में व्याइति और अन्तमें शिरोमन्त्रसहित गायत्री का तीन बार जप करे और प्राणवायु को रोके रहे। प्राणों के इस आयाम का नाम प्राणायाम है। चन्द्रमा और सूर्य आदि ग्रह जा-जाकर लौट आते हैं। परंतु प्राणायाम द्वारा ध्यान मे लगन हो कर योगी हो जाने पर आजतक नहीं लौटे हैं (अर्थात् मुक्त हो गये हैं)। देवि ! जो द्विज सौ वर्षों तक तपस्या करके कुशो के आगे भाग से एक बूँद जल पीता है वह जिस फल को पाता है, यही ब्राह्मणो को एकमात्र धारणा अथवा प्राणायाम के द्वारा मिल जाता है। जो द्विज सुबह उठकर एक प्राणायाम करता है, वह अपने सम्पूर्ण पाप को शीघ्र ही नष्ट कर देता और ब्रह्मलोक को जाता है। जो आलस्य-रहित हो सदा एकान्त में प्राणायाम करता है, वह जरा और मृत्यु को जीतकर वायु के समान गतिशील हो आकाश में विचरता है। वह सिद्धों के स्वरूप, कान्ति, मेधा, पराक्रम और शौर्य को प्राप्त कर लेता है। उसकी गति वायु के समान हो जाती है तथा उसे स्पृहणीय सौख्य एवं परम सुखकी प्राप्ति होती है। सिद्धि प्राप्त करता है, यह सब विधान मैंने बता दिया।
        अब तेज (अग्नि को दोनों भौहों के बीच मे  ध्यान लगाने) से जिस तरह वह सिद्धि-लाभ प्राप्त करता है, उसे भी बता रहा हूँ। जहाँ दूसरे लोगों की बातचीत का कोलाहल न पहुँचता हो, ऐसे शान्त-एकान्त स्थान में अपने सुखद आसन पर बैठकर चन्द्रमा और सूर्य ( बायें और दाहिने आँख) की कान्ति से प्रकाशित मध्यवर्ती देश धूमध्य भाग में जो अग्नि का तेज अव्यक्त रूप से प्रकाशित होता है, उसे आलस्यरहित योगी दीपक रहित अन्धकारपूर्ण स्थान में चिन्तन करने पर निश्चय ही देख सकता है - इसमें संशय नहीं है। योगी हाथ की अंगुलियों से यत्नपूर्वक दोनों नेत्रों को कुछ-कुछ दबाये रखे और उनके तारों को देखता हुआ एक टक से आधे मुहूर्त तक उन्हीं का चिन्तन करे। कुछ समय बाद अन्धकार  में भी ध्यान करने पर वह उस ईश्वरीय ज्योति को देख सकता है। वह ज्योति सफेद, लाल, पीली, काली तथा इन्द्रधनुष के समान रंग वाली होती है। भौहों के बीच में ललाटवर्ती बालसूर्य के समान तेजवाले उन अग्निदेव का साक्षात्कार करके योगी इच्छानुसार रूप धारण करने वाला हो जाता है तथा मनोवाञ्छित शरीर धारण करके क्रीड़ा करता है। वह योगी कारण तत्त्व को शान्त करके उसमें शामिल होकर, दूसरे के शरीर में प्रवेश करना, अणिमा आदि गुणो को पा लेना, मन से ही सब कुछ देखना, दूर की बातों को सुनना और जानना, गायब हो जाना, बहुत-से रूप धारण कर लेना तथा आकाश में विचरना इत्यादि सिद्धियों को निरन्तर अभ्यास के प्रभाव से प्राप्त कर लेता है। जो अन्धकार से परे और सूर्य के समान तेजस्वी है, उसी इस महान् ज्योतिर्मय पुरुष ( परमात्मा) को मैं जानता हूँ। उन्हीं को जानकर मनुष्य काल या मृत्यु को लाँघ जाता है। मोक्ष के लिये इसके सिवा दूसरा कोई मार्ग नहीं है। देवि ! इस प्रकार मैंने तुम से तेजस तत्व के चिन्तन की उत्तम विधि का वर्णन किया है, जिससे योगी काल पर विजय पाकर अमरत्व को प्राप्त कर लेता है।

देवि ! अब पुनः दूसरा श्रेष्ठ उपाय बताता हूँ, जिससे मनुष्य की मृत्यु नहीं होती।

देवि ! ध्यान करने वाले योगियों की चौथी गति (साधना)बतायी जाती है। योगी अपने चित्त को वश में करके यथा योग्य स्थान में सुखद आसन पर बैठे। वह शरीर को ऊँचा करके अञ्जलि बाँधकर चोंच की-सी आकृति वाले मुख के द्वारा धीरे-धीरे वायु का पान करे। ऐसा करने से क्षणभर में तालु के भीतर स्थित जीवनदायी जल की बूँदें टपकने लगती हैं। उन बूँदों को वायु के द्वारा लेकर सूँधे। वह शीतल जल अमृत स्वरूप है। जो योगी उसे प्रतिदिन पीता है, वह कभी मृत्यु के अधीन नहीं होता। उसे भूख-प्यास नहीं लगती। उसका शरीर दिव्य और तेज महान हो जाता है। वह बल में हाथी और वेग में घोड़े की समानता करता है। उसकी आँख की रोशनी गरुड़ के समान तेज हो जाती है और उसे दूर की भी बातें सुनायी देने लगती हैं। उसके केश काले-काले और घुंघराले हो जाते हैं तथा अङ्गकान्ति गन्धर्व एवं विद्याधरों की समानता करती है। वह मनुष्य देवताओं के साल से सौ सालों तक जीवित रहता है तथा अपनी उत्तम बुद्धि के द्वारा बृहस्पति के तुल्य हो जाता है। उसमें इच्छानुसार विचरने शक्ति आ जाती है और वह सदा ही सुखी रहकर आकाश में विचरण की शक्ति प्राप्त कर लेता है।

वरानने ! अब मृत्यु पर विजय पाने की पुनः दूसरी विधि बता रहा हूँ, जिसे देवताओं ने भी प्रयत्नपूर्वक छिपा रखा है; तुम उसे सुनो। योगी पुरुष अपनी जिव्हा को मोड़कर तालु में लगाने का प्रयत्न करे। कुछ समय तक ऐसा करने से वह क्रमशः लम्बी होकर गले की घंटी तक पहुँच जाती है। तदनन्तर जब जिह्वा से गले की घंटी सटती है, तब शीतल सुधा का स्राव करती है। उस सुधा को जो योगी सदा पीता है, वह अमरत्व को प्राप्त होता है।

Following are the yogic spiritual practices to overcome time and death

  1. Pranayama
  2. Mouth Breathing
  3. Meditation of fire in the middle of both Eyes
  4. Tongue Twiste
Shiva-Parvati dialogue

Parvati said - Lord! If you are pleased, then tell me how the Yogi attains the Vayupada born of Yogakasha.


Lord Shiva said - Beautiful! Earlier I have told everything for the benefit of Yogis, according to which Yogis had conquered Kaal. It has also been said about the way a yogi assumes the form of air. Therefore knowing the day of death by the power of yoga

        Get ready in Pranayama. By doing this, within half a month, it conquers the coming period. The vital air located in the heart is always going to ignite the fire. He has been described as the helper of Agni. This air is everywhere and great outside and inside. Knowledge, science and enthusiasm - all have their tendency from air only. The one who conquered the air here, he conquered this whole world.
        Sadhak should always be in Dharna with the desire to conquer old age and death. be located; Because a Yogparayan Yogi should be well engaged in perception and meditation. Just as a blacksmith accomplishes all his work by blowing the bellows through his mouth, in the same way a Yogi should practice Pranayama. The one who is meditated upon at the time of Pranayama is the adorable God with thousands of heads, eyes, legs and hands and covering all the glands is located ten fingers ahead of them. Chant Gayatri three times with Vyati in the beginning and Shiromantra in the end and stop the breath. The name of this dimension of Prana is Pranayama. The planets like the moon and the sun go and come back. But the Yogi who meditated with Pranayama has not returned till date (i.e. has become liberated). Devi! The Dwij who drinks a drop of water from Kushu's part after doing penance for a hundred years, he gets the fruit, This is what Brahmins get through the only dharana or pranayama. The Dwij who wakes up early in the morning and does Pranayama, he quickly destroys all his sins and goes to Brahmaloka. The one who is free from laziness and always practices Pranayama in solitude, conquering old age and death, moves in the sky moving like the wind. He attains the form of Siddhas, Kanti, Medha, might and bravery. His speed becomes like the wind and he gets enviable happiness and ultimate happiness. One attains success, I have told all this law.
        Now I am telling him also the way he achieves success. Where the din of other people's conversation does not reach, sitting on a pleasant seat in such a quiet and secluded place, in the middle country of the sun, illuminated by the glow of the moon and the sun (left and right eyes), which is the source of fire. The light shines in an unmanifested form, a yogi without laziness can definitely see it by contemplating in a dark place without a lamp - there is no doubt about it. The yogi diligently puts some medicine on both the eyes with the fingers of his hand and while looking at their stars, he should concentrate on them for half a moment. After that, by meditating even in the dark, he can see that divine light. That light is white, red, yellow, black and colored like a rainbow. The Yogi becomes the one who assumes the desired form and plays sports by assuming the desired body, after interviewing that Agnidev, who has the effulgence like the child sun on the forehead between the eyebrows. That Yogi pacifies the causal element and becomes possessed by it, enters the body of another, attains the qualities of the soul, sees everything through the mind, hears and knows distant things, becomes invisible, Taking many forms and wandering in the sky, etc. achieves the achievements with the effect of continuous practice. The one who is beyond darkness and as bright as the sun, I know the great luminous man (God). By knowing Him only man transcends time or death. There is no other way for salvation other than this. * Goddess! In this way, I have described to you the best method of contemplation of Tejasattva, by which the yogi attains immortality by conquering time.

Devi! Now again I will tell you the second best solution, by which man does not die. Devi! The fourth movement (Sadhana) of the yogis who  meditate is described. Having controlled his mind, the yogi sat on a comfortable seat in a suitable place. Raising his body and tying his ankles, he slowly inhales air through his beak-shaped mouth. By doing this, drops of life-giving water located inside the palate start dripping in a moment. Smell those drops by taking them through the air. That cool water is nectar. The Yogi who drinks it daily is never subject to death. He doesn't feel hungry or thirsty. His body becomes divine and Teja great. He is an elephant in strength and in speed resembles a horse. His vision becomes sharp like that of Garuda and he starts hearing things from far away. His hair becomes black and curly and Angkanti resembles Gandharva and Vidyadhara. That man lives for a hundred years beyond the 'years of the gods' and becomes equal to Brihaspati by his superior intelligence. He gets the power to move according to his will and he gets the power to move in the sky by being always happy.

Varanne! Now I am again telling the second method to conquer death, which even the gods have kept hidden with effort; you listen to him A Yogi man should bend his tongue and try to put it on the palate. By doing this for some time, it gradually gets longer and reaches the bell of the throat. After that, when the bell of the throat is adjacent to the tongue, then it secretes cool sudha. The Yogi who drinks that Sudha always, he attains immortality.