वैसे तो हनुमान चालीसा का हमने जीवन मे कई बार मन्दिरों मे, भजन के रुप मे कई बार इसका गुणगान किया होगा लेकिन इन धार्मिक जगहों पर केवल इनके दोहें के रुप मे ही प्रस्तुत किया जाता है। इसका शाब्दिक अर्थ बहुत ही कम देखने को मिलता है या बहुत ही कम लोगों को ही इसका असली मतलब पता होता है। तो हम एक छोटी सी शुरुआत करने जा रहे कि हर दोहें का हनुमान चालीसा मे तुलसीदास जी ने ऐसा क्या ज्ञान छुपा रखा है जिससे कि हम अन्जान है तो हम हनुमान चालीसा का अर्थ सहित वर्णन करेंगे।



Hanuman Chalisa Meaning-हनुमान चालीसा का अर्थ

 श्री गुरु चरन सरोज रज निज मनु मुकुरु सुधारि,बरनउँ रघुबर विमल जसु जो दायकु फल चारि।।
बुद्धिहीन   तनु   जानिके   सुमिरौं  पवनकुमार,बल  बुद्धि  विद्या  देहु  मोहिं  हरहु कलेश विकार।।

अर्थ

श्री गुरु महाराज के चरणों के कमलों की धूलि से अपने मन के दर्पण को पवित्र करके श्री रघुवीर के कोमल यश का वर्णन करता हूं, जो चारों धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष के फल को देने वाला है। मैं आपको सुमिरन(ध्यान) करता हूं। आप तो जानते ही हैं कि मेरा शरीर और बुद्धि निर्बल है। मुझे शारीरिक बल, सद्‍बुद्धि एवं ज्ञान दीजिए और मेरे दुखों व दोषों का नाश कर दीजिए।
नोट: इस पंक्ति मे हनुमान चालीसा की शुरुआत होती है और इसे सच्चे मन से ही ईश्वर का ध्यान करते हुए जपना चाहिए। आगे हम हनुमान चालीसा ग्रन्थ की पहले दोहे का वर्णन करेंगे।


Hanuman Chalisa Meaning-हनुमान चालीसा हिन्दी में

जय हनुमान ज्ञान गुण सागर, जय कपीस तिहुं लोक उजागर।।
राम दूत अतुलित बल धामा, अंजनि-पुत्र   पवन   सुत   नामा।।

अर्थ

श्री हनुमान जी! आपकी जय हो। आप गुणी और ज्ञान के सागर है। हे कपीश्वर(वानरों के ईश्वर)! आपकी जय हो! तीनों लोकों मे (स्वर्ग लोक, भूलोक और पाताल लोक) में आपकी कीर्ति है। हे अंजनी के पुत्र! आपके जैसा दूसरा  कोई भी बलवान नहीं हैं।

नोट: इस पंक्ति मे हनुमान चालीसा के इस दोहे मे हनुमान जी के यश के बारे बताया गया है।

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