हनुमान चालीसा के भाग 3 मे हमने हनुमान चालीसा के पवित्र ग्रन्थ मे से आठ पंक्तियों के बारे मे जाना है अब हम इसके आगे की पंक्तियों के बारे मे जानेंगे। दोस्तो हम अपने लेख मे ऐसे ही आठ-आठ पंक्तियों का पुरी तरीक्के से अर्थ सहित वर्णन करेंगे। चलो दोस्तों अब हम हनुमान चालीसा के अगली आठ पंक्तियों की तरफ बढ़ेगें। जोकि निम्नलिखित है। अगर हमारे लेख में अगर कोई त्रुटि होती हो तो कामेंट में जरुर बताये जिसे हम सही तरीक्के से अर्थ को अपडेट कर सकेंगे।
Hanuman Chalisa Meaning (Part-4)-हनुमान चालीसा का अर्थ (भाग-4)
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहि जलधि लांघि गये अचरज नाहीं, दुर्गम काज जगत के जेते सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते।।
राम दुआरे तुम रखवारे होत न आज्ञा बिनु पैसारे, सब सुख लहे तुम्हारी सरना तुम रक्षक काहू को डरना।।
अर्थ
हे पवन पुत्र जी! आपको श्री रामचन्द्र जी ने जो अंगूठी दी थी वो अंगुठी मिलते ही अंगुठी मुंह में रखकर समुद्र को लांघ लिया, इसमें कोई आश्चर्य नहीं है। संसार में जितने भी कठिन से कठिन काम हो, वो आपकी कृपा से आसान हो जाते है। श्री रामचन्द्र जी के द्वार के आप रक्षा करने वाले हैं, जिसमें आपकी आज्ञा के बिना किसी को प्रवेश नहीं मिलता अर्थात आपकी प्रसन्नता के बिना राम कृपा प्राप्त नहीं होती है। जो भी आपकी शरण में आते हैं, उस सभी को आनन्द प्राप्त होता है, और जब आप रक्षा करने वाले हैं, तो फिर किसी का भी डर नहीं रहता है।
अगले पंक्ति का अर्थ
आपन तेज सम्हारो आपै तीनों लोक हांक तें कांपै, भूत पिशाच निकट नहिं आवै महावीर जब नाम सुनावै।।
नासै रोग हरै सब पीरा जपत निरंतर हनुमत बीरा,संकट तें हनुमान छुड़ावै मन क्रम बचन ध्यान जो लावै।।
अर्थ
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